शुक्रवार, 18 जनवरी 2019

पैसा और सुख

नौकरी के लिए हर पढ़ा-लिखा परेशान है, यह एक मुद्दा है, जिसे गंभीरता से लिया जाना चाहिये। एक दूसरा मुद्दा यह है कि जो लोग नौकरी कर रहे हैं, उनमें से भी बहुत लोग ऐसे हैं, जो बेरोजगारों से ज्यादा परेशान हैं। यानी न तो नौकरी वाला खुश है और न ही बिना नौकरी वाला। समझ में नहीं आता कि समाज में क्या हो रहा है। असल में खुशी का मूल आधार पैसा बन गया है, जो खुद विनिमय का माध्यम होने से भेदभाव का पर्याय है। पैसा जितना अधिक होगा,उसका मूल्य उतना ही अधिक होगा। नौकरी या रोजगार करने के बाद हमें पैसा ही मिलता है। जिसके पास नौकरी या रोजगार नहीं है, वह पैसे को पाने के लिए परेशान है, जिसके पास नौकरी या रोजगार है, यानी पैसा है, वह और पैसे के लिए जोर लगा रहा है, यानी परेशान है। वहीं बहुत पैसे रखने या कमाने वाले उसके खर्च के लिए परेशान हैं। पैसा कहां लगायें, सब कुछ तो है। पैसा पैसे को खींचता है। पैसा है तब भी परेशानी, पैसा नहीं है, तब भी परेशानी। जब तक विनिमय का माध्यम पैसा रहेगा, तब तक इंसान सुखी नहीं रहेगा।